Breaking
Wed. Jan 22nd, 2025

ठंड में जोड़ों के दर्द में लाभदायक आयुर्वेद :डाॅ. जी. एम. ममतानी

Spread the love

health

शीत ऋतु में जोड़ों का दर्द सामान्य समस्या होती है। इससे परेशान कई रुग्ण दर्दनिवारक औषधियां खाकर चैन की सांस तो लेते हैं, परंतु अगले दिन फिर वही तीव्र पीड़ा की अनुभूति होती है। इस तरह प्रत्येक दिन उन्हें औषधि पर निर्भर रहकर मोल लेने पड़ते हैं अनेक साइड इफेक्ट्स। जैसे-पेट में अल्सर, शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा में वृद्धि, किडनी व लिवर में खराबी आदि। किंतु आयुर्वेद की विशेष चिकित्सा के माध्यम से संधिवात की पीड़ा से राहत पा सकते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा होने की वजह से किसी प्रकार का साइड इफेक्ट भी नहीं होता।

जोड़ों का दर्द मुख्यतः संधिवात, आमवात, गाउट, स्पांडिलाइटिस, ऑस्टियोआर्थराइटिस, साइटिका, स्लिप डिस्क, लकवा, स्नायु पीड़ा, कंपवात, कमर दर्द, घुटने का दर्द, ऑस्टियोपोरोसिस, फ्रोजन शोल्डर, एवेस्कुलर नेक्रोसिस(एवीएन), मस्कुलर डिस्ट्राफी, माइस्थेनिया ग्रेविस आदि व्याधियों में होता है।

किसी भी जोड़ में दर्द होने पर अपने मन से या किसी के द्वारा बताई हुई बाजारू दवा कतई न खाएं, बल्कि योग्य चिकित्सक से जोड़ों के दर्द का निदान कराने के पश्चात चिकित्सा लें। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में उपरोक्त व्याधियों की चिकित्सा में केवल लाक्षणिक चिकित्सा के रूप में दी जाने वाली वेदनाशामक व स्टेराइड औषधियों से अस्थायी लाभ मिलता है। आराम न होने पर अंत में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट या ऑपरेशन की सलाह दी जाती है। इसमें शत-प्रतिशत आराम की गारंटी नहीं रहती, खर्च भी ज्यादा आता है। इसके अलावा इन औषधियों के दुष्परिणाम भी होते हैं। जबकि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार इसमें रोग के मूल कारण वात दोष की चिकित्सा की जाती है। इससे रोगी को वेदना आदि लक्षणों में स्वयं ही प्रभावी लाभ मिलता है व ऑपरेशन की आवश्यकता कम पड़ती है।

आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा संधिगत वात विकारों की विशेष प्रकार से चिकित्सा की जाती है, जिसके अंतर्गत रुग्णालय में 8 से 21 दिन रोगानुसार उपचार किया जाता है। इससे रुग्ण को स्थायी लाभ मिलता है। आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में परहेज, आयुर्वेदिक औषधि, फिजियोथेरेपी, पंचकर्म व योगोपचार चिकित्सा की जाती है। संधिवात से ग्रस्त रुग्णों को औषधि में वातनाशक व बल्य औषधियां दी जाती हैं। औषधियों के साथ ही रोगी को हितकर विशेष व्यायाम भी कराया जाता है।
संधिवात रोग में पंचकर्म के अंतर्गत शास्त्रोक्त विधि से स्नेहन, स्वेदन, पिंड-स्वेद, नाड़ी-स्वेद, अत्याधुनिक सोना स्टीम बाथ, पोटली सेंक, कटि-ग्रीवा-जानुधारा, तैलधारा, पिंषिचल धारा (ऑटोमेटिक यंत्र द्वारा), बस्तिकर्म, विरेचनकर्म, अग्निकर्म, लेप, उपनाह, शिरोधारा, केरलीय पंचकर्म इत्यादि क्रियाएं आवश्यकतानुसार की जाती हैं।
अतः जोड़ों के दर्द से परेशान न होकर आयुर्वेद के चिकित्सा उपक्रम को अपनाकर रोग से राहत पायी जा सकती है। (विभूति फीचर्स)(लेखक जाने माने आयुर्वेदिक विशेषज्ञ हैं।)

The post ठंड में जोड़ों के दर्द में लाभदायक आयुर्वेद :डाॅ. जी. एम. ममतानी appeared first on Vaanishree News.

By

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *